Document Abstract
राम की शक्तिपजूा क्तमथकीय आधार पर क्तिखी गई आधक्तुिक कक्तिता है| यह कक्तिता
तत्कािीि भारतीय समाज और राजिीक्तत का यथाथथ क्तित्र प्रस्तुत करती है| क्तिक्तभन्ि आधक्तुिक
तकिीकों से िैस क्तिक्तिश साम्राज्य के समक्ष भारतीय जि का संघर्थमौक्तिक रास्तों की तिाश क्तकये
क्तििा संभि िहीं था | स्ितंत्रता आन्दोिि केिेतत्ृिकताथके रूप मेंगांधी इसी तरह के मौक्तिक रास्तों
की तिाश करते हैं | दसूरी ओर सीता की मुक्ति के रूप मेंिारी-मक्तुि इस कक्तिता के केंद्र मेंहै| यह
कक्तिता ि के िि तत्कािीि यथाथथका क्तित्र प्रस्तुत करती हैिरि ितथमाि पररक्तस्थक्ततयों मेंभी प्रासंक्तगक
है |
बीज शब्द-अन्याय,मौलिकता,सामलजक यथाथथ ,राजनीलतक चेतना,स्वतंत्रता आन्दोिन,आधलुनक
मानव,लमथक,नारी-मलुि
लिन्दी सालित्य के इलतिास में छायावाद का समय 1918 से िेकर 1936 तक का माना
जाता िै | लनरािा की कलवता ‘राम की शलिपजूा ‘ का रचनाकाि 1936 िै | मतिब लक यि कलवता
छायावाद और प्रगलतवाद केसंलधकाि मेंलिखी गई कलवता िै| इसके साथ िी यि वर्थ लिन्दी सालित्य
मेंगोदान और कफ़न जैसी कािजयी रचनाओंका वर्थ िै| इस समय तक भारत के स्वतंत्रता आन्दोिन
की मजबूत उपलस्थलत अंग्रेज मिससू कर चकुे थे| िखनऊ के प्रगलतशीि अलधवेशन मेंप्रेमचंद स्पष्ट
रूप से सालित्य को राजनीलत के आगे चिने वािी मशाि के रूप में प्रलतलित कर रिे थे | इन सारी
लस्थलतयों के आिोक में जब िम राम की शलि पजूा कलवता को पढ़तेिैं तो उसके गिरे सामलजकराजनेलतक लनलिताथथ सामने आते िैं | “क्योंलक इसके भीतर समचूा देशकाि,संस्कृलत की अथथवत्ता
,मनोलवज्ञान,मनष्ुय का वतथमान और पारम्पररक संघर्थ जो आने वािे यगु का संघर्थ भी िैसब
एकलत्रत,संघलनत िो गया िै|”1