Document Abstract
जनजातीय समाज आज गंभीर संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। यह अनेक सांस्कृतिक समस्याओं से ग्रस्त है। इन समस्याओं में धर्मांतरण, अलगाव, अंधविश्वास और परसंस्कृतिग्रहण प्रमुख हैं आशीष बोस, निहार रंजन रे, एल. पी. विद्यार्थी, राय वर्मन तथा अनेक दूसरे विद्वानों ने भारत की विभिन्न जनजातियों का अध्ययन करके स्पष्ट किया है कि
विभिन्न परसंस्कृतिग्रहण तथा सात्मीकरण का परिणाम हैं। परसंस्कृतिग्रहण तथा सात्मीकरण की प्रक्रियाओं ने संसार की लगभग सभी जनजातियों के जीवन में नई समस्याएँ पैदा की हैं, लेकिन भारत में जनजातियों का जीवन संक्रमण काल में होने के कारण उनके ऊपर इसका अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है मजूमदार तथा मदन ने भी लिखा है कि भारत में आदिवासियों की अधिकांश समस्याएँ उनके भौगोलिक पृथक्करण और नए सांस्कृतिक संपर्क का परिणाम हैं। बाहरी संपर्कों के परिणामस्वरूप जनजातियों का देश के अन्य धर्मों से संपर्क हुआ, जिसकी वजह से दो अलग-अलग संस्कृतियों में टकराहट हुई। चूँकि अन्य धर्मों का वैचारिक आधार ज्यादा मजबूत था इसलिए आदिवासियों का सांस्कृतिक विघटन प्रारंभ हुआ इससे उनके अंदर अपने परंपरागत धर्म के प्रति उपेक्षा और तिरस्कार की भावना पैदा हुई।