Document Abstract
भारत को विविधता की भूमि होने पर गर्व है। इसमें विभिन्न जातियों, समुदायों, भाषाओं, धर्मा, संस्कृति और लिंग के लोगों को शामिल किया गया है। यद्यपि लोग राजनीतिक स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं, अधिकांश लोग निरक्षर हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। ऐसे विविध समुदायों के उत्थान और प्रगति के लिए सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक शिक्षा है।
2011 की जनगणना के अनुसार, सात वर्ष से अधिक आयु का प्रत्येक व्यक्ति जो किसी भी भाषा में पढ़ और लिख सकता है, साक्षर कहलाता है। इस मानदंड के अनुसार, 2011 के सर्वेक्षण में राष्ट्रीय साक्षरता दर लगभग 74.07 है। 2001 के सरकारी आंकड़े यह भी मानते हैं कि साक्षरता में वृद्धि की दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। इस वर्ष महिला साक्षरता राष्ट्रीय औसत 65 थी जबकि पुरुष साक्षरता 82 थी भारतीय राज्यों के भीतर, केरल ने उच्चतम साक्षरता दर 93: दिखाई है जबकि बिहार में औसत 63 8: साक्षरता है। 2001 के आंकड़ों ने यह भी संकेत दिया कि देश में श्पूर्ण अशिक्षितों की कुल संख्या 304 मिलियन थी।
India is proud to be a land of diversity. It includes people of different castes, communities, languages, religions, cultures and genders. Although the people enjoy political freedom, most of the people are illiterate and live below the poverty line. One of the most powerful tools for the upliftment and progress of such diverse communities is education.
According to the 2011 census, every person above the age of seven who can read and write in any language is called literate. The 2001 government figures also assume that the rate of increase in literacy is higher in rural areas than in urban areas. This year female literacy was 65% of the national average while male literacy was 82%. Within the Indian states, Kerala has shown the highest literacy rate of 93% while Bihar has an average of 63% literacy. The 2001 figures also indicated that the total number of illiterate people in the country was 304 million.