Document Abstract
गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' को बुकर पुरस्कार मिलना न केवल हिन्दी जगत अपितु पूरे भारतीय समाज के लिए हर्ष और गौरव का विषय है। जाहिर है इसके बाद इस उपन्यास के पाठकों की संख्या में अच्छी-खासी वृद्धि हुई है। इसके साथ ही आलोचना- प्रत्यालोचना का नया दौर भी शुरू हुआ है ।
उपन्यास की शुरुआत में लेखिका कहती हैं कि एक तरह से यह दो औरतों की कहानी है, लेकिन इन दो औरतों के साथ-साथ वे पूरे परिवेश की कहानी कहती चलती हैं। गीतांजलि श्री का यह उपन्यास न केवल अपने शिल्प में अनूठा है, बल्कि अपने कथ्य में भी अलहदा स्वर रखता है। उपन्यास की मुख्य पात्र 80 वर्ष की एक बूढ़ी औरत है, जिसने पति की मृत्यु के बाद अपने-आप को सबसे अलग-थलग कर लिया है। पूरा परिवार उसे उठाने में लगा है, वह उठने को तैयार नहीं, लेकिन एक दिन अचानक वह गायब हो जाती हैं । यहाँ से आगे कहानी कई-कई मोड़ों से गुजरती है। न उठने के दिनों में मानो वह अपनी पुरानी केंचुल को छोड़ने का अभ्यास कर रही थी, क्योंकि जब वह उठती है तो एक नएपन, एक ताजगी के साथ नया जीवन करती हैं।