Institutional Repository, Rajeev Gandhi Govt. Post Graduate College Ambikapur, Distt. Surguja, Chhattisgarh(India), Pin Code - 497001-Dr. Umesh Kumar Pandey
Dr. Umesh Kumar Pandey
Title
दृष्टिकोण
Author(s)
, Dr. Umesh Kumar Pandey
Issue Date
02-03-2021
Citation
-
Document Abstract
आज कोरोना वायरस, जिसे चीनी या वुहान वायरस भी कहा जा रहा है, ने लगभग पूरी मानवता को अपनी चपेट में ले लिया है। इस महामारी के कारण मरने वालों की भारी संख्या के कारण इस वायरस से संक्रमित लोगों में ही नहीं, जो लोग संक्रमित नहीं है, उनमें भी ऽतरा बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य सुविध् ाएं, महामारी के सामने बौनी पड़ती दिऽाई दे रही है। ऐसे में अस्पतालों में बेड, आईसीयू, वेंटीलेटर का तो अभाव है ही, सामान्य स्वास्थ्य उपकरणों जैसे आॅक्सीजन, दवाइयों, स्वास्थ्य कर्मियों आदि की भी भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि सरकार ने बेड, दवाइयों, आॅक्सीजन की उपलब्ध् ता सुनिश्चित करने हेतु प्रयास किए हैं, लेकिन वर्तमान त्रासदी के समक्ष वे प्रयास बहुत कम है। कम ज्यादा मात्रा में इसी प्रकार की स्थिति का सामना अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, ब्राजील जैसे देश पहले से ही कर चुके हैं या कर रहें हैं। भारत में भी इस प्रकार की त्रासदी में लोगों की मजबूरी का लाभ उठाकर मुनापफा कमाने वाले लोगों की कमी नहीं है। हम सुनते हैं कि दवाइयों, आॅक्सीजन, आॅक्सीमीटर आदि के विक्रेता ही नहीं, बल्कि अस्पताल भी मुनापफा कमाने की इस होड़ में शामिल हो चुके हैं। जनता के संकट, इस मुनापफाऽोरी के कारण कई गुना बढ़ चुके हैं। इन संकटों से समाधन का एक ही रास्ता है कि जल्द से जल्द इन स्वास्थ्य सुविधओं को पुख्ता किया जाए और इलाज हेतु साजो-सामान और दवायों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध् कराया जाए। जहां तक दवाइयों की कमी, उनकी ऊंची कीमतों और उससे ज्यादा मुनापफाऽोरी का सवाल है, उसके पीछे देश के व्यापारियों की जमाऽोरी से कहीं ज्यादा वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकाध्किार है। पेटेंट और अन्य बौ(िक संपदा अध्किारों के कानूनों के कारण दवाइयों और यहां तक कि स्वास्थ्य उपकरणों आदि में भी इन कंपनियों का एकाध्किार स्थापित है। इन कानूनों के चलते इन दवाइयों और उपकरणों का उत्पादन कुछ हाथों में ही केंद्रित रहता है, जिससे इनकी ऊंची कीमतें यह कंपनियां वसूलती है। हाल ही में हमने देऽा कि रमदेसिविर नाम के टीके की कीमत 3000 रुपए से 5400 रुपए थी जिसे भारत सरकार ने नियंत्रित तो किया, लेकिन उसके साथ ही उसकी भारी कमी भी हो गई। इसके चलते इन इंजेक्शनों की कालाबाजारी हो रही है और मरीजों से इंजेक्शन के लिए 20 हजार से 50 हजार रू. की कीमत वसूली जा रही है। यही हालत अन्य दवाइयों की है, जिसकी भारी कमी और कालाबाजारी चल रही है। ऐसा नहीं है कि भारतीय कंपनियां इन दवाइयों को बनाने में असमर्थ है, लेकिन चूँकि वैश्विक कंपनियों के पास इन दवाइयों का पेटेंट है, वे अपनी मर्जी से अन्य कंपनियों ;भारतीय या विदेशीद्ध को लाइसेंस लेकर इन दवाइयों का उत्पादन करवाती है और इस कारण इन दवाइयों की भारी कीमत वसूली जाती है।
Language
Hindi
Document Year
2021
Subject Name
Hindi
Publisher Name
दृष्टिकोण प्रकाशन
Rights :
दृष्टिकोण प्रकाशन