Document Abstract
आज सम्पूर्ण विश्व में आदर्श राजनीति अंतिम सौरों ले रही है। पतनोन्मुख नैतिक आदर्श रसातल पर पहुँच गये है। मान उद्विकास के सिद्धान्त का शिकार हो गया है। साम्राज्यवादी सोच किसी न किसी रूप में हावी हो चुका है। ऐसे में विचारधारा है जो टिकाऊ, विश्वसनीय और सदैव प्रासंगिक प्रतीत होता है। गांधीवाद शब्द आते ही जेहन में सत्य और अहिंसा उभरता है। गांधी जी के सत्य और अहिंसा को यदि एक शब्द में अभिव्यक्त करना हो तो 'सत्याग्रह' से बेहतर कोई अन्य शब्द सकता है। गांधी जी की आत्मकथा ही है 'सत्य के प्रयोग' यदि गम्भीरता से देखा जाए तो गांधी जी का सम्पूर्ण जीवन ही प्रयोगशाला रहा। चाहे ब्रिटेन में विधि की शिक्षा ग्रहण करते समय पश्चिम की भौतिकवादी वातावरण में अपनी संस्कृति बचाए रखने का संघर्ष हो, चाहे दक्षिण अफ्रीका में काले वर्ण के लोगों के मानवाधिकार की रक्षा का संघर्ष हो । भारत में अंग्रेजी भारत के शोषण के विरूद्ध संघर्ष हो या अछूतोद्वार के लिये अपनों से संघर्ष; गांधी जी ने सत्याग्रह के बल पर वो सब कर दि हजारों बंदूक की नलियों न कर सकीं। गांधी जी के मौन में बारूद के धमाके से ज्यादा शोर था। आज विश्व में ऐसा कोई देश नहीं न ही व्यक्ति है, जिसके लिये सत्याग्रह अप्रासंगिक हो। फिर चाहे वह मन में चलने वाले अच्छे-बुरे का अंतर्दृद्व हो या समाज के ल का संघर्ष हो या फिर बुराई के खिलाफ संघर्ष हो; गांधी का सत्याग्रह सदैव प्रासंगिक बना हुआ है।